काव्यांजलिस्वास्थ्य

अगर हम अच्छी गुणवत्ता के भोजन, पानी, नींद के लिए बेहतर योजना बनाएंगे तो हमारी बहुत-सी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी

21 मार्च तक सभी उत्तर-भारतीयों के लिए वसंत ऋतु का आरम्भ हो जाएगा और उसके बाद से दिन बड़े होते चले जाएंगे। यह सिलसिला जून में गर्मियों के समाप्त होने तक जारी रहेगा। जाहिर है, इससे हमारे सोने के तौर-तरीकों में भी बदलाव आएगा क्योंकि रातें गर्म होंगी।

ऐसे में हम रात का कुछ समय टीवी देखकर बिता सकते हैं या फोन पर अधूरा काम पूरा कर सकते हैं और सुबह 8 या 9 बजे तक 6-7 घंटे की नींद पूरी कर सकते हैं। जिनके पास ऑफिस के काम की गहमागहमी नहीं, वे नींद को दिन में तब तक बढ़ा सकते हैं, जब तक कि गर्मी बहुत न हो जाए। तो क्या देर तक सोना और दिन में सोकर नींद पूरी करना सही है?

एक्सपर्ट्स का कहना है, नहीं। इसके लिए वे जो कारण बताते हैं, वे अनेक हैं। चलिए, उन्हें समझते हैं। हर प्राणी के शरीर में सर्केडियन रिदम होती है, जिसे 24 घंटे की इंटर्नल-क्लॉक कहते हैं। सर्केडियन रिदम्स शारीरिक, मानसिक व व्यवहारगत होती हैं। पृथ्वी की हर प्रजाति की तरह मनुष्य भी अंधेरा होते ही सोने चले जाते थे और सुबह जाग जाते थे। हमने इसका पालन लंबे समय तक किया है।

महाभारत के दिनों में तो सूर्यास्त के बाद युद्ध पर भी रोक लग जाती थी। इसका कारण यह है कि अंधेरे में सोने के समय मस्तिष्क मेलाटोनिन नामक हॉर्मोन उत्पन्न करता है। रिसर्चरों का कहना है कि रात में रोशनी में रहने के कारण मेलाटोनिन के उत्पादन में बाधा होती है।

इससे शरीर की सर्केडियन रिदम और जागने-सोने के चक्र पर असर पड़ता है और नतीजतन शरीर का समूचा कार्य-व्यवहार ही प्रभावित होने लगता है। कैसे? मेलाटोनिन से सम्बंधित दो मुख्य स्थितियां हाइपोमेलाटोनिनेमिया और हाइपरमेलाटोनिनेमिया कहलाती हैं। पहली में सामान्य से कम और दूसरी में सामान्य से अधिक मेलाटोनिन उत्पन्न होता है।

हाइपोमेलाटोनिनेमिया में आप एडवांस्ड स्तर के उस स्लीप-डिसऑर्डर का सामना करते हैं, जिसमें आप शाम को जल्दी यानी 6 से 9 बजे तक सो जाते हैं और रात 2 से सुबह 5 बजे के बीच जाग उठते हैं। ऐसे लोग नॉन 24-ऑवर स्लीप-वेक सिंड्रोम से भी परेशान होते हैं, जिसका मतलब है कि उनके सोने-जागने का समय एक समान होता है, लेकिन उनकी इंटर्नल क्लॉक 24 घंटे से अधिक की होती है।

इसका नींद की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ता है और उच्च रक्तचाप, मोटापा, इंसुलिन-प्रतिरोध जैसी समस्याएं पैदा होती हैं। वहीं हाइपरमेलाटोनिनेमिया तब होता है, जब हममें रात के समय मेलाटोनिन का स्तर सामान्य से अधिक होता है।

इससे दिन में नींद आती है, शरीर का तापमान कम रहता है और मांसपेशियों का क्षरण होता है। बहुत सारे लोग जल्दी सोने चले जाते हैं, इसके बावजूद उनके दिमाग में विचार चलते रहते हैं, जिससे उनकी नींद की गुणवत्ता प्रभावित हो जाती है।

जैसा श्रीश्री रवि शंकर कहते हैं, शरीर ही हमारा वास्तविक जीवन-साथी है। आप शरीर की जितनी परवाह करेंगे, उतना ही शरीर आपकी केयर करेगा। जल्दी खाना खा लें और 9 से 10 बजे के बीच किसी अंधेरे कमरे में सोने चले जाएं। ध्यान करें और ध्यान करते हुए नींद में जाने का अभ्यास करें।

ब्लाइंड्स पहनें, जिससे आंखों के सामने अंधेरा होगा और दिमाग को संकेत मिलेगा कि रात हो गई है, मेलाटोनिन के स्तरों को बदलने का समय आ गया है। अंधकार में पीनियल ग्रंथि सर्वाधिक मेलाटोनिन उत्पन्न करती है, जबकि उजाले में उत्पादन कम हो जाता है। इससे आपका प्रदर्शन नियमित रहता है।

फंडा यह है कि अगर हम अच्छी गुणवत्ता के भोजन, पानी, नींद के लिए बेहतर योजना बनाएंगे तो हमारी बहुत-सी समस्याएं स्वत: ही या तो समाप्त हो जाएंगी या हमें बिलकुल भी प्रभावित नहीं कर सकेंगी।

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