काव्यांजलिव्रत एवं त्यौहार

शरद पूर्णिमा: रात्रि में जगमगाता है पूर्णिमा का त्योहार

पूर्णिमा का त्योहार हमारे भारतीय समाज में विशेष महत्व रखता है, और शरद पूर्णिमा इनमें से एक है। यह पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार फागुन मास के अंत में आता है और अक्टूबर-नवम्बर के महीनों में मनाया जाता है। इस दिन चंद्रमा पूर्ण रूप में होता है, और यह त्योहार ज्यों ही सूखा हुआ सम्पूर्ण बारहमासी भारत में उत्तरायण के आरंभ का संकेत देता है।

शरद पूर्णिमा के इस पर्व को हम विभिन्न तरीकों से मनाते हैं। इस दिन का अर्थ होता है कि रात्रि में चंद्रमा बहुत प्रकार से चमकता है, जिसका असर सबकी जिंदगी पर पड़ता है।

इस दिन के विशेष महत्व के कारण, लोग रात्रि में अपने घरों के छत पर बैठकर चंद्रमा को देखते हैं और उसके चाँदनी प्रकाश का आनंद लेते हैं। इसे ‘कोजगरी पूर्णिमा’ भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन लोग रात को जागरण करते हैं और चंद्रमा की किरणों का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

इस दिन को खासकर महिलाएं बड़ी धूमधाम से मनाती हैं। वे रात को चाँद की उपासना करती हैं और व्रत रखती हैं। इस दिन कोजगरी पूर्णिमा व्रत के अनुसार, महिलाएं रात के बाद खाना खाती हैं, जिसे ‘कुआँ के पानी’ कहते हैं, और इसके बाद उन्हें बहुत समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है, जिसे व्रत के अंत में बड़े ही दिव्य त्योहार के साथ खुशियों के साथ मनाया जाता है।

इस दिन को किसी विशेष प्रकार की देवी की उपासना भी की जाती है, जैसे कि मां लक्ष्मी, मां काली, और मां दुर्गा। लोग मन्दिरों और पूजा घरों में इन देवियों की मूर्तियों की पूजा करते हैं और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।

शरद पूर्णिमा का महत्व न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से होता है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। इस दिन को परिवार और दोस्तों के साथ बिताने का भी एक अच्छा अवसर मिलता है जब लोग एक-दूसरे के साथ मिलकर खुशियों का त्योहार मनाते हैं।

इस तरह, शरद पूर्णिमा हमारे जीवन में एक खुशी और सामृद्धि का संकेत है, और हम इसे धार्मिक और सांस्कृतिक माहौल में मनाकर अपने जीवन को और भी खुशहाल बना सकते हैं।

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